नई दिल्ली : 10 जून को इस वर्ष का पहला सूर्य ग्रहण लगने वाला है। हालांकि ये भारत के अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख में ही दिखाई देगा। भारतीय समयानुसार ये दोपहर 1.42 बजे शुरू होगा और शाम 6.41 बजे खत्म हो जाएगा। वलयाकार सूर्य ग्रहण की घटना यूं तो वर्ष में एक से अधिक बार होती है, लेकिन हर बार ही ये वैज्ञानिकों और खगोलीय घटनाओं में दिलचस्पी रखने वालों के लिए किसी अदभुत नजारे से कम नहीं होती है।
आपको बता दें कि ये घटना उस वक्त घटती है जब सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी एक सीधी रेखा में आ जाते हैं। ऐसे में कुछ समय के लिए चंद्रमा पूरी तरह से सूर्य की रोशनी को रोक देता है। ऐसे में सूर्य ग्रहण होता है।
भारत की बात करें तो इसे शाम लगभग 5:52 बजे इसे अरुणाचल प्रदेश में दिबांग वन्यजीव अभयारण्य के पास से देखा जा सकेगा। वहीं, लद्दाख के उत्तरी हिस्से में ये शाम लगभग 6 बजे दिखाई देगा। भारत के अलावा इस घटना को उत्तरी अमेरिका, उत्तरी कनाडा, यूरोप और एशिया, ग्रीनलैंड, रूस के बड़े हिस्से में भी देखा जा सकेगा। हालांकि कनाडा, ग्रीनलैंड तथा रूस में वलयाकार जबकि उत्तर अमेरिका के अधिकांश हिस्सों, यूरोप और उत्तर एशिया में आंशिक सूर्य ग्रहण ही दिखाई देगा।
आपको बता दें कि भारत में सूर्य ग्रहण का धार्मिक महत्व काफी अधिक है। धार्मिक तौर पर यदि देखा जाए तो ये वट सावित्री व्रत के दिन लग जा रहा है। इसके अलावा इसी दिन शनि जयंती और ज्येष्ठ अमावस्या भी है। धार्मिक रूप से इसका महत्व और अधिक इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि शनि जयंती पर ग्रहण का योग करीब 148 साल बाद बन रहा है। इससे पहले 26 मई 1873 को शनि जयंती के दिन ग्रहण पड़ा था। हालांकि धार्मिक दृष्टि से इस तरह की घटना को शुभ नहीं माना जाता है।
धार्मिक तौर पर इस ग्रहण में सूतक की बात करें तो यहां पर ये मान्य नहीं होगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि उसी ग्रहण का सूतक काल मान्य होता है जो ग्रहण अपने यहां दृष्टिगोचर हो। और क्योंकि भारत में ये सूर्य ग्रहण दिखाई नहीं दे रहा है इसलिए यहां पर ये मान्य नहीं होगा।
धार्मिक दृष्टि से इस दिन नए व मांगलिक कार्य को शुभ नहीं माना जाता है। वहीं ग्रहण के समय खाना बनाना या खाना दोनों ही शुभ नहीं होते हैं। ग्रहण के समय में भगवान की मूर्ति छूना और पूजा करना भी वर्जित होता है। ग्रहण के समय में तुलसी के पौधे को भी हाथ नहीं लगाया जाता है। ग्रहण के समय सोने से भी बचना चाहिए।
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