श्री गुरु तेग बहादुर जी का आज 400वां प्रकाश पर्व ,’हिंद की चादर’ के जीवन से सीखिए धैर्य, मानवता की सेवा व सर्वधर्म सदभाव

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Today 400th Prakash Parv of Shri Guru Tegh Bahadur Ji

चंडीगढ़ : ‘हिंद की चादर’ श्री गुरु तेग बहादुर जी का आज 400वां प्रकाश पर्व मनाया जा रहा है। यह प्रकाश पर्व उस समय आया है जब पूरी दुनिया कोरोना महामारी के दौर से गुजर रही है और हर किसी को एक दूसरे की मदद की जरूरत है। श्री गुरु तेग बहादुर के प्रकाश पर्व का इस दौर से क्या संबंध हो सकता है, इस बात पर विचार करना होगा।

सिख स्कालर राजिंदर सिंह कहते हैं कि गुरु तेग बहादुर जी ने गुरु गद्दी, गुरु हरिकृष्ण साहिब से ली जो उस समय दिल्ली में हैजा जैसी बीमारी के बीच जान गंवा रहे लोगों की सेवा करते हुए ज्योति जोत समा गए। अब एक बार फिर वैसे ही हालात हैं। जो संस्थाएं श्री गुरु तेग बहादुर जी का प्रकाशोत्सव मना रही हैं उनके कंधों पर यह जिम्मेदारी है कि वह मानवता की सेवा करके गुरु के संदेश को दुनिया तक पहुंचाएं।

धैर्य और शांति ही धरोहर

गुरु तेग बहादुर जी का जो सर्वश्रेष्ठ व्यक्तित्व प्रभाव है वह है धैर्य और शांति। यह उनके जीवन की धरोहर रही है जिसकी वजह से उन्होंने 26 साल लगातार भक्ति की। जब गुरुत्व मिला और दुश्मनों ने भी वार किया तब भी उन्होंने शांति रखने के लिए आनंदपुर नगरी बसा दी। उसके बाद उन्होंने धर्म की खातिर बलिदान दिया। उन्होंने मौत के बारे में जो लिखा है उसका शायद ही कहीं वर्णन मिलता है। मौत को उन्होंने पानी के बुलबले की तरह बताया है। आज के दौर में जब कोरोना का खौफ है तो गुरु तेग बहादुर जी की वाणी पढ़ना जीवन जीने की राह जानना हो सकता है।

मानवता की सेवा

श्री गुरु तेग बहादुर जी ने अपना जीवन में मजलूम लोगों की अत्याचारियों से रक्षा करते हुए गुजारा। धैर्य, वैराग्य और त्याग की मूर्ति गुरु तेग बहादुर जी ने लगातार 20 वर्ष तक बाबा बकाला में तपस्या की। गुरु गद्दी मिलने के बाद वह श्री आनंदपुर साहिब आ गए। सिखी के प्रचार के लिए वह रूपनगर, सैफाबाद होते हुए बनारस, पटना, असम आदि क्षेत्रों में गए। यहां उन्होंने अध्यात्मिक, सामाजिक, आर्थिक उन्नयन के लिए रचनात्मक कार्य किए, रूढि़यों व अंधविश्वासों की आलोचना कर नए आदर्श स्थापित किए।

वीरता मानव कल्याण के लिए

गुरु हरगोबिंद जी के पांचवें पुत्र गुरु तेगबहादुर जी का जन्म अमृतसर में हुआ। उनके बचपन का नाम त्यागमल था और उन्होंने 14 वर्ष की आयु में अपने पिता के साथ मुगलों के खिलाफ हुए युद्ध में वीरता का परिचय दिया। उनकी वीरता से प्रभावित होकर उनके पिता गुरु हरगोबिंद ने उनका नाम त्यागमल से तेग बहादुर (तलवार के धनी) रख दिया। उनकी माता का नाम माता नानकी था। उनकी वीरता मानव जाति के कल्याण के लिए थी।

 

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